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Priya Kathakar Ki Amar Kahaniyan: Premchand

by Premchand and Balendu Diwedi Buy Now Know More
About Author
Balendu Dwivedi

Balendu Dwivedi is an Indian Hindi author. Born 1 December 1975 in the Brahmapur village of Gorakhpur District in Uttar Pradesh, India. He has written a book: Madaripur Junction. He is working on a new novel 'Via Fursatganj'. Balendu Dwivedi is a government employee and works as a District Minority Welfare Office in state of Uttar Pradesh.
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'मदारीपुर जंक्शन उपन्यास का कथ्य एक व्यंग्य की धार लिए चलता है लेकिन धीरे-धीरे वह व्यंग्य गांव की ज़िंदगी के कठोर यथार्थ में परिणत होता जाता है।किसी नही एक पक्ष को साथ लिए बिना,जिस तरह की तटस्थ निस्संगता और बेबाक़ी के साथ चरित्रों की चीर-फाड़ की गई है,वह इस उपन्यास का बेहद मार्मिक पहलू है।'

Devendra Raj Ankur

'मदारीपुर जंक्शन को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि बालेन्दु ने गाँव को बहुत नजदीक से और बहुत आत्मीयता से देखा है।इसीलिए उनके लिए ग्रामीण जीवन के डिटेल्स को बहुत डूबकर लिखना संभव हो सका है।...इस उपन्यास को पढ़ते हुए श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी की याद बहुत आती है।बालेन्दु अभी नवयुवक हैं और उनके सामने संभावनाओं का अपार क्षेत्र पसरा पड़ा है।'

Vishwnath tripathi

'मदारीपुर जंक्शन' गांव है | यह उपन्यास उसी गांव की कथा है | यह नाम व्यंजक है | कई दिशाओं और आयामों में गतिमान (?) या बिखरा जीवन ! उस बिखराव में चमकती "द्युतिमान मणियों" की तरह 'चइता' और 'मेघा' हैं | उन्हीं के संघर्ष में वास्तविक संभावना है जिसमें आज के पूरे सामाजिक और राजनीतिक तिकड़म और बांझ सत्ता की क्रूर जकड़बंदी से उबारने की क्षमता है | 'होरी'और 'बावन दास' की मृत्यु में जैसी सृजनशील संभावनाएं हैं वैसी ही संभावना 'मेघा' की मृत्यु में है| इस दृष्टि संपन्न रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |

Nityanand tiwari

'मदारीपुर गांव उत्तर प्रदेश के नक्शे में ढूंढें तो शायद ही कहीं आपको नजर आ जाए,लेकिन निश्चित रूप से यह गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर गांव के आस-पास के हजारों-लाखों गांवों से ली गई विश्वसनीय छवियों से बना एक बड़ा गांव है।जो अब भूगोल से गायब होकर उपपन्यास में समा गया है।बात उपन्यास की करें तो मदारीपुर के लोग अपने गांव को पूरी दुनिया मानते हैं। गांव में ऊंची और निचली जातियों की एक पट्टी है।जहां संभ्रांत लोग लबादे ओढ़कर झूठ, फरेब, लिप्सा और मक्कारी के वशीभूत होकर आपस में लड़ते रहे, लड़ाते रहे और झूठी शान के लिए नैतिक पतन के किसी भी बिंदु तक गिरने के लिए तैयार थे।फिर धीरे-धीर निचली कही जाने वाली बिरादरियों के लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक होते गए और 'पट्टी की चालपट्टी' भी समझने लगे थे।इस उपन्यास में करुणा की आधारशिला पर व्यंग्य से ओतप्रोत और सहज हास्य से लबालब पठनीय कलेवर है।'

Ashok Chakradhar

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