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Priya Kathakar Ki Amar Kahaniyan: Premchand
by Premchand and Balendu Diwedi

कहानी, साहित्य की सबलतम विधा है। वह एक ऐसा दर्पण है, जिसमें व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों, क्रियाविधियों उसके सुख-दुःख के क्षणों की सजीव, हृदयग्राही तथा मार्मिक तस्वीरें देखी जा सकती हैं। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी को निश्चित परिप्रेक्ष्य और कलात्मक आधार दिया। उनकी कहानियाँ परिवेश को बुनती हैं। पात्र चुनती है। उसके संवाद उसी भाव-भूमि से लिए जाते हैं जिस भाव-भूमि से घटना घट रही है। इसलिए पाठक कहानी के साथ अनुस्यूत हो जाता है। इसलिए प्रेमचंद यथार्थवादी कहानीकार हैं।

लेकिन प्रेमचंद की सबसे बड़ी खूबी है कि वे घटना को ज्यों-का-त्यों लिखने को कहानी नहीं मानते। यही वजह है कि उनकी कहानियों में आदर्श और यथार्थ का गंगा-यमुनी संगम है। कथाकार के रूप में प्रेमचंद अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गये थे। उन्होंने मुख्यताः ग्रामीण एवं नागरिक सामाजिक जीवन को कहानियों का विषय बनाया है। उनकी कथायात्रा में श्रमिक विकास के लक्षण स्पष्ट हैं, यह विकास वस्तु विचार, अनुभव तथा शिल्प सभी स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है। उनका मानवतावाद अमूर्त भावात्मक नहीं, अपितु सुसंगत यथार्थवाद है।

प्रेमचंद की प्रत्येक कहानी मानव मन के अनेक दृश्यों चेतना के अनेक छोरों सामाजिक कुरीतियों तथा आर्थिक उत्पीड़न के विविध आयामों को अपनी संपूर्ण कलात्मकता के साथ अनावृत करती है। कफन, नमक का दारोगा, शतरंज के खिलाड़ी आदि उनकी सैकड़ों कहानियां ऐसी हैं, जो विचार और अनुभूति दोनों स्तरों पर पाठकों को आज भी आंदोलित करती हैं। वे एक कालजयी रचनाकार की मानवीय गरिमा के पक्ष में दी गई उद्घोषणाएँ हैं। कहा जा सकता है कि समाज के दलित वर्गों, आर्थिक और सामाजिक यंत्रणा के शिकार मनुष्यों के अधिकारों के लिए जूझती मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ हमारे साहित्य की सबलतम निधि हैं।

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