Madaripur Junction
by Balendu Diwedi
'मदारीपुर जंक्शन' उपन्यास अपने ग्रामीण कलेवर में कथा के प्रवाह के साथ विविध जाति-धर्मों के ठेकेदारों की चुटकी लेता और उनके पिछवाड़े में चिंगोटी काटता चलता है।वस्तुतः उपन्यास के कथानक के केंद्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का मदारीपुर-जंक्शन नामक एक गाँव है जिसमें एक ओर यदि मदारीमिज़ाज चरित्रों का बोलबाला है तो दूसरी ओर यह समस्त विद्रूपताओं का सम्मिलन-स्थल भी है।इस लिहाज़ से मदारीपुर-जंक्शन अधिकांश में सामाजिक विसंगतियों-विचित्रताओं का जंक्शन है।
मदारीपुर के प्रतिनिधि चरित्रों में कदाचित् ऊँची कही जाने वाली बिरादरी के छेदी बाबू और बैरागी बाबू हैं।साथ में साये की तरह उनके तमाम साथी-संघाती भी मौजूद हैं।ये सभी चरित्र पूरी कथा में न केवल अपनी सम्पूर्ण मेधा के साथ उपस्थित रहकर आपसी खींचतान के नग्न-प्रदर्शन से अपने पतन की इबारत लिख रहे हैं बल्कि लंगीमारी,अड़ंगेबाज़ी,पैंतरेबाज़ी,धोखेबाज़ी, मक्कारी,तीन-तिकड़म में आकंठ निमग्न रहते हुए अपने नीच करतबों पर खुलकर अट्टहास भी कर रहे हैं।
दूसरी ओर गाँव के निचली कही जाने वाली बिरादरी के वे चंद लोग हैं जो धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं,अपने अधिकारों के लिए खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं और सामाजिक-राजनीतिक बराबरी के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं।चइता इसी संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है।लेकिन इस संघर्ष में वह परले दर्जे की घटिया गँवई राजनीति और षड्यंत्र का शिकार हो जाता है और अंतत: उसकी बलि चढा़ दी जाती है।फिर उसकी लड़ाई को आगे ले जाने के लिए पत्नी मेघिया सहित उसके समाज के लोग किस तरह एकजुट होकर कोशिशें करते हैं और इस प्रयास को भी अंत-अंत तक कैसे छिन्न-भिन्न करने के कुटिल षड्यंत्र रचे जाते हैं,यह सब कुछ दिखाना बल्कि इसे उघाड़कर सामने रख देना ही उपन्यासकार का मूल मंतव्य है।
कथानक का परिवेश ठेठ ग्रामीण है और उसके परिवेश का ताना-बाना इस क़दर बारीक बुना गया है कि हम क्षणभर में ही अतीत के समुंदर में गोते लगाने लगते हैं।ज्यों-ज्यों यह गहराई बढ़ती जाती है,हमें इसका हर दृश्य और चरित्र जाना-पहचाना और भोगा हुआ-सा लगने लगता है।ऐसा लगता है जैसे सब-कुछ हमारे आस-पास घट रहा है।भाषा की रवानी और ताज़गी कथा के प्रवाह को गति देती है।पूरी कथा में क़दम-दर-क़दम नए-नए मोड़ आते रहते हैं जिसके कारण पाठक के मन में निरंतर प्रश्नाकुलता की स्थिति बनी रहती है।यद्यपि अंत में नरेटर हमें जिस निराश मन:स्थिति में अकेला छोड़कर चुपके से विदा हो लेता है,वहाँ हम अपनी आँखों से ज्यादा अपने हृदय को नम होता हुआ पाते हैं।
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